home of unspeakable crimes against women

 

 

Bahawna
Class Teacher -VII, Vidyasthali School

Women, otherwise, portrayed in hyperbole terms in religious texts, literature and traditions of the country remain prisoners of time, traditions, political games and the rising consumerist web. There is no ‘safe exit’ for her even though she may be a city-based  working women or an uneducated village women drawing water from a pond.

 In a survey conducted by Thomson Reuters’ Trust Law Women, a hub of legal information and legal support for women’s rights, India ranks with Afghanistan, Congo and Somalia as one of the most dangerous place for women.

A casual scan of the front page of any major Indian newspaper assaults the reader with shocking incidents of violence against women and children. The recent YouTube video of a teenage girl being molested by a mob in Guwahati caused a national outcry. In a country where women and girls are traditionally revered as the Mother and the, this is simply unacceptable. A society that is unable to respect, protect and nurture its women and children loses its moral moorings and runs adrift. This problem cannot be Goddess solved by the government alone but by a national awakening involving the entire country and civil society.

While women in India generally face numerous disadvantages — poor health indicators, lower literacy rates, lower income levels, poor female to male ratio due to sex-selective abortions and female infanticide, to list a few — the last few years have witnessed some astonishing acts of violence against women and children. Last year, 24,206 cases of rape were registered in police stations acrossIndia. Acts of violence registered against women in 2010 total around 2,13,585. Swayam, a Kolkata-based NGO, asserts that between 2005 and 2009, when the overall crime rate rose by 16%, crimes against women rose by 31%. Conviction on rape charges is also likely to be extremely low.

An important change that can be implemented is to make a start in schools. Mandatory child and women’s rights education should be included in the curriculum and the spotlight put on violence against women and children in all its forms. Instead of staying away from such taboo topics, teachers should deal with them in the classroom. A nationwide teachers

.training programme must be introduced to ensure that the subject is properly taught.

Law for Rape in india

_Section 375, 376, 376 A-D IPC deal with rape.

_Section 375 provides that a man is said to commit rape if the woman is under 16 years of age, with or without her consent.

_Marital Rape – is an exception under the IPC if the wife is under 15 years of age.

Suggestions:

Prosecution and strict legal action are likely to provide an important deterrent. This could be a three-tier approach. First, it is important to increase reporting of rape and assault. Across the world, rape is a generally under reported crime; this is all the more true in India. It is essential that women and children be educated on their rights on reporting of a violent act against them through an active social media campaign.

Second, it is absolutely vital that law enforcers are trained to react swiftly and with sensitivity to women and children who have been harassed, assaulted or raped. Sensitivity training and knowledge of the rights of women and children are another vital need and must be made mandatory for all law enforcement agencies.

Third, punishments need to be exemplary and widely covered in the media. There has to be a “shock and awe” campaign of zero tolerance of sex offenders and those who kill and violate women and children. Fast track courts should be established to ensure that the law is surgical and unrelenting in pursuing and ensuring that such offenders face the full force of justice, regardless of their rank and station.

Finally, a nationwide campaign is needed to reignite India’s core values and traditions that respect and nurture women and children. This can only be borne out of consensus in society. Awareness among men of the scope of this issue is critical. Men who turn a blind eye to such brutal acts in their own neighborhoods  communities and families are just as culpable as those that perpetrate these acts. Action from courts and police will not suffice if the community remains defiantly opposed to change.

So the biggest question remains: how exactly to engage the entire populace to initiate a change in mindset? How can a national conversation on this subject be leveraged into national action?
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आशा का गीत

Shalini Chandra

 

 

Shalini Chandra
Head Mistress, Junior School, Study Hall

(‘आओ बच्चों तुम्हें दिखायें ‘ की धुन पर )

 

बात हमारे हक़ की है और है अपनी पहचान की

अब ना दबेगी अब न झुकेगी बेटी हिंदुस्तान की

अब ना रुकेंगे  हम आगे बढें कदम

 

घर के बाहर बेटी को सब -बुरी नज़र से ताक रहे

कितना लगी बंदिशे कितने घर वालों के ज़ुल्म सहे

इज्जत की दुहाई देकर होठ हमारे सिल रहे

अब जाकर हम समझ रहे हैं कीमत अपनी जान की

अब न दबेगी

 

नहीं किसी पर बोझ बेटियाँ ,यही बढाती हैं संसार

आधी दुनिया इनकी और बराबर का इनका अधिकार

खोज रही हैं अपनी ताकत , हर बाधा कर लेंगी पार

छूनी इनको ऊँचाई अब नीले आसमान की

अब ना दबेगी

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महिलाएं, असुरक्षित, असमान, अनचाही

कंचन लता द्विवेदी 
कक्षा 4, अध्यापक,

यहाँ की नारी कहने को तो देवी अवश्य है किन्तु व्यहार और सम्मान में उसका स्थान पुरषों से कम ही रहता है हम महिलाएं जिस समाज में जी रही  है वह पुरुष प्रधान समाज है यह पुरुष प्रधान समाज महिलायों को आगे नहीं बढ़ने नहीं देना चाहता है उसकी उन्नति में पग – पग पर बाधाएं उत्पन्न करता है घर से बाहर निकलने के बाद महिलाएं सुरक्षित नहीं है! घर में भी नहीं! आये दिन बलात्कार छेड़खानी आदि तमाम घटनाएं हो रही है यह किसी एक की समस्या नहीं है बल्कि पूरे देश की समस्या है! इसके खात्मे के लिए एक सखत कानून की जरूत है और इसके लिए जरूरी है की सरकार एक सखत कानून बनायें!
एक बेटी दो कुलो की इज्ज़त को संभालती है वह एक परिवार की निर्मात्री भी होती है! फिर भी लडकियों का दर्जा लडको से नीचे ही रहता है दोनों का जन्म समान ही होता है फिर भी लडको की जरूरत पढाई लिखाई आदि सभी पैर विशेष ध्यान दिया जाता है जब की लड़कियों की ख्वाहिशों को नजरअंदाज कर उन्हें समझाकर उनकी इछाओ को दबा दिया जाता है

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मुझे इन चिरागों से डर लग रहा है

समस्त स्टाफ
कस्तूरबा गाँधी आवासीय बालिका विघालय
मडियाहूँ , जौनपुर

” मुझे इन चिरागों से डर  लग रहा है

 जला देंगे मेरा यह घर लग रहा है ,
 सड़के है रोशन घरो में अंधेरे
 मुझे  यह अजूबा शहर लग रहा है “
हम और हमारे देश के  प्रत्येक नागरिक जब तक यह मिलकर मंथन नही करेंगे तब तक महिलाओ की सुरक्षा सम्भव नही है तो बस कहना है –  मंथन करो ,मंथन करो , मंथन करो ——

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सपना भारत माता का

समस्त स्टाफ
कस्तूरबा गाँधी आवासीय बालिका विघालय
मुक्तिगंज , जौनपुर

 

“नारी माता  ,बहन ,पत्नी और प्रिया बन जाती
फिर भी उसे नारी होने की कीमत चुकानी पड़ती
उसे प्रभु से ये सर्वदा शिकायत रहती ,
शरीर ऐसा क्यों दिया , क्यों वह बेबस सी ही रहती
सदियों से यह क्यों चलता रहा , आँचल में है दूध ,आँखों में है पानी
हम ही दुर्गा है और हम ही काली  माँ
फिर भी  हरण किया जाता , हमरे चीर  का
अपने बेबस शरीर को बनाना होगा लोहे का
और तभी पूरा होगा सपना भारत माता  का ”

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वरदान

समस्त स्टाफ
कस्तूरबा गाँधी आवासीय बालिका विघालय
मुक्ति गंज, जौनपुर

स्त्री वह है जो हमें पहचान देती है ,
अपनों के बीच हमें सम्मान देती है ।
कह सके अपने मन के भावो को ,
ऐसा हमें वरदान देती है ।
स्त्री वह है जो हमें पहचान देती है ||
कस्तूरबा गाँधी आवासीय बालिका विघालय

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हिंसा के कारण

राशमी
कस्तूरबा गाँधी बालिका विघालय
महराजगंज , जौनपुर

“औरत ने आदमी को जन्म दिया
आदमी ने उसे बाजार दिया
जब चाहा उसे मसला – कुचला
जब चाह उसे दुतकार दिया”

वही आदमी उस औरत का तिरस्कार करता है और वह सहती रहती है । वह नही अपने खिलाफ हो रहे अत्याचार पर आवाज नही उठाती है क्या हम औरतो की मानसिकता ऐसी बन गयी है, क्या हम अपने आप को बेबस और लाचार समझती है और कई बार ऐसा होता है की औरते समाज व् लोक लाज के डर से अपनी आवाज नही उठाती है , और वह इस हिंसा की शिकार होती है जो की बहुत गलत बात है ।

घरेलू हिंसा कई तरह के हो सकते है

1- औरत के अपने अधिकारों हा हनन होना .
2- गाली – गलोज देना औरत को
3- औरतो के साथ मारपीट करना
4- औरतो को घर से बाहर आने जाने पर रोक लगाना
5- उन्हें पैसे न देना आदि ।

इस हिंसा के कारण –

1- आदमी को नशे की लत होना
2- गरीबी ।

हमारे समाज में इसके विरुद्ध कई कानून बनाए गये है । इसके अंतर्गत पीड़ित को सरकार की तरह से सुरक्षा मुहैय्या करायी गई है । पीड़ित इस अत्याचार के खिलाफ चिहे तो ‘498 ए ‘ के तहत पुलिस केस भी कर सकते है । इसलिए हम औरतो को चाहिए की इसके विरुद्ध आवाज उठाए और अपने ऊपर होने वाले अत्याचार से मुक्ति पाये तथा पुरषों को भी चाहिये की वह महिलाओ का सम्मान करे और उन्हें वह ऊँचा दर्जा दे , जिनकी वह अधिकारी है ।

” नारी निंदा मत करो , नारी नर की खाल
नारी से ही होता है , ध्रुव प्रहलाद समान ”

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बुरी मानसिकता

Collective Creation
के.जी.बी.वी. बदलापुर जौनपुर

समाज में रहने वाले ऐसे दरिंदो को सुधारने के लिए हम लड़कियों का यही विचार है कि उन्हें फाँसी की सजा देना बहुत कम है बल्कि ऐसे दरिंदो को नपुंसक बना उसके हाथ पैर काट किया जाये तथा एक आँख निकाल देना चाहिए ऐसी सजा देनी चाहिए जैसे एक लड़की जिन्दगी भर इस घटना से दुखी हो मर मर के जीती है उसी प्रकार उसके साथ ऐसा दुराचार करने वाला भी जिन्दगी भर घुट घुट कर जिएँ तथा उसे अपने गलती का एहसास हर पल हर पग पर होता रहे । उसे देखने से ऐसी बुरी मानसिकता वाले व्यक्ति भी ऐसा करने से डरे ।
इस प्रकार की सजा देने से सिर्फ समाज में ही नही बल्कि लोगो के दिलों में डर समा जायेगा तथा लोग ऐसे गलत कार्य करने से डरेंगें । तथा हम लड़कियों का यही विचार है कि हमें इतना ताकतवर बनाया जाये जिससे ऐसी दुर्घटना घटने पर हमें हिम्मत से सामना कर विजय हासिल कर सके।

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तेरी यही कहानी

राशमी
कस्तूरबा गाँधी बालिका विघालय महाराजगंज , जौनपुर

” नारी जीवन हाय , तेरी यही कहानी
आँचल में दूध , और आँखों में पानी ”

सर्वप्रथम इस घिनोने कार्य पर रोक लगे तथा इसके लिए सरकार और भी कठोर कदम उठाए । हमारे यहाँ बलात्कार के दोषी की सजा 7 वर्ष की कैद है , जो की कम है । इसके लिए और कठोर – कानून बनिए जाये । यौन – उत्पीडन के विषय को कक्षा की पाठ्य – पुस्तक में शामिल किया जाये , जिससे बच्चियाँ इस विषय पर जागरुक बने । लडकियों को स्कूल में आत्मरक्षा के तरीको के बारे में बताने के लिए विशेष ट्रेनरो की नियुक्ति हर ब्लोक स्तर पर की जाये ।
हमारे यहाँ बालिंग होने की उम्र को 18 वर्ष से घटाकर 16 वर्ष की जाये , जिससे उस छठवे दरिंदो को भी कड़ी सजा मिल सके ।
ऐसे मामले फ़ास्ट ट्रेक कोर्ट में जाये , जिससे इनका निपटारा जल्द हो सके । हर तहसील में कम से कम एक महिला थाना की स्थापना होनी चाहिए । परिवारजनों को शुरुआत से ही बच्चो को इस बात की सीख देनी चाहिए की दूसरो के घर की लडकियों को अपने घर की लडकियों की तरह ही समझे । उनका सम्मान करे तथा उन्हें अपने बराबर ही मने । बसों पर काले शीशे प्रतिबंधित हो । फिल्मे समाज का आइना होती है । अंत अश्लील फिल्मो पर रोक लगे । जगह – जगह चेक – पोस्ट बनाकर पुलिसे द्वारा वाहनों की तलाशी ली जाये । इन कठोर कदमो को उठाकर ही हम और हमारा समाज इस समस्या से निपट सकते है तथा इस दिशा में एक सकारात्मक बदलाव ल सकता है ।

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शराब का दानव – घर घर की कहानी

प्रियंका चटर्जी 
डिजिटल स्टडी हॉल

श्रीमती अंजु
वार्डन , के.जी.बी.वी .सोनमद्र के सहयोग से

गरीबी एक ऐसा रोग है जिसकी दवा आजादी के  इतने साल बाद भी हम लोग नही ढूंढ़ पाये हैं । भूख , कर्ज़ और बेरोगारी से दुखी लोगो को एक ही इलाज समझ में आता हैं  शराब ! सस्ती , देसी शराब गाँव और शहरो की मलिन बस्तियों के आस पास आसानी से मिल जाती है ।  आदमी जब एक बार शराब पीते हैं और कुछ देर के लिये अपनी परेशानियाँ भूल जाते हैं तो फिर वे इस नशे के आदी हो जाते है । उन्हें कुछ देर जो चैन मिलता है उसके कारण घर वालो , खासतौर पर औरतों और  लड़कियों को भंयकर तकलीफें झेलती पड़ती हैं ।

यह दारु का दानव जिस को अपना शिकार बनाता है , वह अपने वह अपने  होश खो देता है और इंसान से जानवर बनते देर नहीं लगती । इस वर्ग की किसी महिला या किसी लड़की से बात कीजिये – दारु पिये हुए मर्द किस तरह गाली गौज और मार पीट करते हैं इसकी हज़ारो कहानियाँ सुनने को मिलेंगी । बलात्कार जैसे यौन – अपराध ज़्यादातर  नशे की हालत में ही किये जाते हैं । कैसी विडंबना हैं कि जो गरीबी से घबरा कर नशा करने लगते हैं , वे ही दारु खरीदने के लिए कुछ भी करने से नहीं चुकते – घर  से पैसे चुराते हैं , पत्नी से तथा बच्चों से छीन लेते हैं या घर का सामान तक बेच देते हैं । नशे में धुत  होकर अपनी पत्नी से तो ज़बरदस्ती करते भी हैं कभी कभी अपने परिवार और पड़ोस की लड़कियों को भी नहीं छोड़ते । इज्ज़त के नाम पर उनका मुँह सिल दिया जाता है ।

कस्तूरबा गाँधी विघालय, मयोरपुर सोनभद्र में डिजिटल स्टडी हॉल दूवारा संचालित क्रिटिकल डायलाग्स कार्यक्रम के अंतर्गत जब लड़कियों से बात की गई तो सभी ने घर के मर्दों के नशा करने की और उससे होने वाले इन अत्याचारों की बातें बताई ।  उनकी बातों से यही लगा कि यह समस्या इतने लम्बे समय से चली आ रही है कि वे यही सब देखते हुए ही बड़ी हुई हैं । उन्हें लगता है कि आदमी तो दारु पियेंगें ही और पीकर गलत काम भी करेंगें  । न उनकी बात कोई सुनता है न उन्हें यह पता है कि इसका विरोध भी किया जा सकता है । जरूरत है उनकी आवाज सुनने की उन्हें सक्षम बनाने की और भरोसा दिलाने की, कि हम उनके साथ है ।

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